दशरथ जी ने प्राण छोड़ते वक्त पुत्र राम को याद किया था फिर भी क्यो नहीं मिला था मोक्ष ?
“बेटा राम तुम मुझे जेल में डाल कर राज्य पर अधिकार कर लो…में तुमसे जो मांग रहा हूँ (वनवास) वो तुम मर करो नहीं तो में जी न सकूंगा!” रामजी से प्रेम के चलते पिता दशरथ ने बहुत प्रकार से कोशिश की थी उनसे बिछोह को रोकने की लेकिन कर्मो से कोई नहीं जित सका है.
रामजी ने पिता की आज्ञा का अनुसरण किया और वन गमन किया, राम जी को वन से फिर लिवा लाने ने के लिए उन्होंने सुरथ (अपने प्रिय सारथि) को भेजा लेकिन जब वो खाली हाथ लौट आये तो दशरथ जी बेसुध हो गए. जिस प्रिय कैकयी के साथ ही उन्हें रहना पसंद था उसका कक्ष छोड़ तब दशरथ कौशल्या के महल में चले गए.
वंहा पहले तो कौशल्या ने भी उन्हें कटु वचन कहे लेकिन बाद में (पति धर्म) अपराध बोध से उन्होंने दशरथ जी से माफ़ी मांगी. वो रात बहुत लम्बी थी, कौशल्या जी की गोद में ही रोते हुए दशरथ जी अचेत हो गए और इसी अचेत अवस्था में ही उनका प्राण आधी रात में ब्रहालीन हो गए.
कौशल्या जी भी बेसुध थी उन्हें सुबह पता चला तो महल में चीत्कारो की आवाजे गूंजने लगी…
दशरथ जी की मौत हालाँकि भगवान् राम को स्मरण करते हुए हुई थी लेकिन फिर भी उनको मोक्ष नहीं मिला था बल्कि वो स्वर्ग में गए थे. भगवान् के पिता को भी मोक्ष नहीं मिला ये आप सभी सोच रहे होंगे लेकिन ये ही हक़ीक़त है कर्म के बंधन ही ऐसे है के कोई कुछ भी कर ले वो भोगने ही पड़ते है.
निल पर्वत में हुए युद्ध में (लंका में) भगवान् राम के अमोघ बाण से रावण मारा गया, तुरंत ही आस्मां से पुष्प वर्षा होने लगी थी. त्रिदेव और देवताओ समेत इंद्र भी वंहा आ गए और सभी ने राम जी को बधाई और साधुवाद दिया, उन्ही के साथ तब राजा दशरथ भी राम जी से मिलने आये थे.
जाने वो सिद्धांत जिसके चलते दशरथ जी को भी नहीं मिला था मोक्ष…
दरअसल दशरथ जी की मौत अचेत अवस्था में हुई थी न की चेतन अवस्था में इसलिए वो मृत्यु के अंतिम क्षण में भगवान् (राम) को याद नहीं कर पाए थे. अगर कोई उनकी मृत्यु का लक्षण जान उन्हें धरती पर ले लेता (गरुड़ पुराण के अनुसार) तो उनका मोक्ष हो सकता था लेकिन ऐसा कोई कर नहीं पाया क्योंकि कर्मो का बंधन था.
साथ ही मोक्ष के लिए भक्ति का होना परम आवश्यक है, बिना भक्ति के मोक्ष नहीं मिलता है और एक कारण ये भी है की भक्ति में जो आनंद है वो आनंद स्वर्ग और वैकुण्ठ में भी नहीं है. इसलिए दशरथ जी को स्वर्ग भोगना पड़ा बाद में उन्होंने वासुदेव रूप में अवतार लिया और वंहा उन्होंने भक्ति का आनंद लिया तब उन्हें मिला मोक्ष.
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