जानिए उन गुरु शिष्य के बारेमे जिससे आज भी हमे प्रेरणा मिलती हे

पूरी दुनिया में आपके गुरु या शिक्षक से बड़ा कोई नहीं है. गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है. संभवतः इसलिए हमारे देश में गुरुओं को पूजने की समृद्ध परंपरा है. इसी महीने के आखिरी सप्ताह में गुरुओं के पूजन का पर्व, गुरु पूर्णिमा आने वाला है. आषाढ़ मास के सबसे आखिरी दिन यानी आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु के दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन देशभर में गुरुओं की आराधना, पूजा-अर्चना की जाती है. हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि आपको ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो गुरु के पास जाएं, क्योंकि गुरु ही हैं जो ईश्वर को पाने का मार्ग दिखा सकते हैं. अगले कुछ दिनों में गुरु पूर्णिमा आने वाला है. आइए इस गुरु पूर्णिमा के मौके पर हम उन गुरुओं की बात करते हैं, जिनके ज्ञान से आलोकित शिष्यों को दुनिया ने महान माना.

विश्वामित्र-राम

भारत में गुरु की महत्ता और गुरु-शिष्य के संबंध के बारे में पौराणिक ग्रंथों में खूब लिखा गया है. रामायण में अयोध्या के राजकुमार राम को गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र का अनन्य भक्त कहा गया है. वशिष्ठ ने जहां राम को बाल्य-काल में शिक्षा देकर उनके ज्ञान के आधार को मजबूत बनाया था, वहीं विश्वामित्र ने राम को तरुण अवस्था में अपने ज्ञान से आलोकित किया था. हम देखें तो इन दोनों गुरुओं के मुकाबले राम की महिमा ज्यादा है. वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए. राजा के रूप में राम-राज्य का उदाहरण दिया जाता है. लेकिन यह गुरुओं का ही प्रभाव था कि राम को दुनिया ने एक राजकुमार के मुकाबले, बड़े व्यक्तित्व के रूप में जाना.

परशुराम-कर्ण

रामायण के बाद जाहिर तौर पर हमें महाभारत में गुरु-शिष्य की समृद्ध परंपरा का बखान मिलता है. महाभारत में तो गुरु और शिष्य के अनगिनत उदाहरण हैं. इनमें सबसे अनोखा है परशुराम और कर्ण का. तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के तहत कर्ण को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा. इस कारण उन्हें कौरवों या पांडवों की तरह राजकुल के गुरु से शिक्षा नहीं मिल सकी. कर्ण ने परशुराम से शिक्षा ली. लेकिन परशुराम सिर्फ ब्राह्मण को ही शिक्षा देते थे, इसलिए कर्ण ने नकली जनेऊ पहन ली. कहते हैं कि अपने शिष्य की प्रतिभा से परशुराम इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने कर्ण को युद्ध कला के हर वो कौशल सिखाए, जिसके वे खुद महारथी थे. महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, शिक्षा के अंतिम दिनों में एक दिन परशुराम, कर्ण की जांघ पर सिर रखकर सो रहे थे. इसी दौरान एक कीड़ा उनकी तरफ बढ़ता दिखा तो कर्ण ने अपना पैर आगे कर दिया. कथा के अनुसार, बिच्छू के काटने से बहे खून ने परशुराम की नींद तोड़ दी और उन्हें शिष्य के अदम्य साहस का पता चला. लेकिन किसी ब्राह्मण के इतना साहसी होने पर संदेह भी हुआ. बाद में कर्ण की असलियत जानकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दे दिया.

द्रोण-अर्जुन

महाभारत में गुरु-शिष्य परंपरा में जिस एक जोड़ी की सर्वाधिक चर्चा की जाती है, वह है द्रोणाचार्य और अर्जुन की. पांडवों में से एक अर्जुन की प्रतिभा देखकर गुरु द्रोणाचार्य ने अपने इस शिष्य को विश्व के महानतम धनुर्धर के रूप में स्थापित कर दिया. महाभारत की कथा के अनुसार, अर्जुन से सर्वाधिक स्नेह के कारण द्रोणाचार्य को कई मामलों में पक्षपाती भी बताया गया है. एकलव्य और कर्ण के उदाहरणों को हम देखें तो द्रोणाचार्य की पक्षपाती दृष्टि स्पष्ट दिखती है. लेकिन अर्जुन और द्रोण के बीच गुरु-शिष्य के संबंधों को देखने पर हमें एक विद्वान गुरु के महान शिष्य बनने की कहानी का पता चलता है.

रामकृष्ण-विवेकानंद

शास्त्रों की कथा से इतर, आधुनिक काल में सर्वाधिक प्रसिद्ध गुरु-शिष्य की जोड़ियों में सबसे प्रमुख नाम है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का. बंगाल के दक्षिणेश्वर मंदिर के संत रामकृष्ण के ज्ञान से एक बालक नरेंद्र नाथ इतना प्रतिभाशाली बना कि दुनिया आज भी विवेकानंद के विचारों का लोहा मानती है. सही मायने में देखें तो एक महान गुरु की महत्ता और उसके विद्वान शिष्य की प्रसिद्धि का इससे अच्छा और सटीक उदाहरण आपको कहीं नहीं मिलेगा. विवेकानंद ने अपने भाषणों, लेख और वचनों में हर जगह रामकृष्ण परमहंस की महानता का वर्णन किया है. साथ ही गुरु और ईश्वर, दोनों में से किसी एक की महत्ता के मामले में गुरु को सर्वोपरि स्थान दिया है.

गोखले-गांधी

महात्मा गांधी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बताया था. यह गोखले ही थे जिन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी को भारत को पहले समझने और फिर कुछ करने की सलाह दी थी. क्योंकि दक्षिण अफ्रीका से गांधी का भारत आना, उनकी वकालत संबंधी कार्यों की वजह से हुआ था. स्वदेश में भी दक्षिण अफ्रीका की तरह रंगभेदी सरकार की नीतियों को देख गांधी का ध्यान बरबस ही यहां पर केंद्रित हो गया. यही वह महत्वपूर्ण समय था, जब गोखले ने गांधी को देश को समझने की सलाह दी. इसके बाद महात्मा गांधी ने समूचे भारतवर्ष में जाकर यहां की संस्कृति को जाना-समझा. इसके बाद गांधी जिस भूमिका में आए और अपने जीवन के अंत तक बने रहे, वह सब इतिहास है.

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