जानिए जया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा को, इस व्रत से मिलता है अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को जया पार्वती व्रत किया जाता है। इस दिन माता पार्वती के निमित्त व्रत किया जाता है और उनसे सौभाग्यवती और समृद्धशाली का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। यह व्रत खासतौर पर महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस साल 14 जुलाई, रविवार के दिन यह व्रत किया जाएगा। कई जगहों पर इसे विजया पार्वती व्रत भी कहा जाता है। सुहागिन महिलाएं इस दिन माता पार्वती की पूजा करती है। इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को बताया था। इसके अलावा इस व्रत की जानकारी भविष्योत्तर पुराण में भी मिलती है।

शास्त्रों के अनुसार जया पार्वती व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसके साथ ही उन्हें वैधव्य ( विधवा होने ) का दुख नहीं भोगना पड़ता है। जया पार्वती व्रत भी गणगौर, हरतालिका, मंगला गौरी और सौभाग्य सुंदरी व्रत की तरह होता है। इस व्रत को कुछ क्षेत्रों में सिर्फ 1 दिन के लिए, तो कुछ जगहों पर 5 दिन तक किया जाता है।

इस विधि से करें व्रत

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद हाथ में जल लेकर जया पार्वती व्रत का संकल्प लें, इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी या मिट्टी के, बैल पर बैठे शिव-पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें। स्थापना किसी मंदिर या ब्राह्मण के घर पर वेदमंत्रों से करें या कराएं और पूजा करें। पूजा करते समय सबसे पहले कुंकुम, कस्तूरी, अष्टगंध, शतपत्र (पूजा में उपयोग आने वाले पत्ते) व फूल चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, दाख, अनार व अन्य ऋतुफल चढ़ाएं और उसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। इसके बाद माता पार्वती का स्मरण करें और उनकी स्तुति करें। अंत में कथा सुनें और कथा समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भाजन कराएं और उसके बाद खुद नमकरहित भोजन ग्रहण करें। इस विधि से जया पार्वती व्रत करने से मां पार्वती प्रसन्न होती है और मनाकमना पूरी करने का आशीर्वाद देती है।

क्या हे पौराणिक कथा ?

विजया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां संतान नहीं होने से वे बहुत दुखी रहते थे।

एक दिन नारदजी उनके घर पधारे। उन्होंने नारद मुनि की खूब सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा।

तब नारदजी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव, माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूरी होगी।

तब ब्राह्मण दंपति ने उस शिवलिंग को ढूंढकर उसकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और 5 वर्ष बीत गए।

एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं लौटा तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वन देवता व माता पार्वती को स्मरण किया।

ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वन देवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दंपति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की, तब माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने की बात कही।

आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के दिन उस ब्राह्मण दंपति ने विधिपूर्वक माता पार्वती का यह व्रत किया जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इस दिन व्रत करने वालों को पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है तथा उनका अखंड सौभाग्य भी बना रहता है।

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