जानिए कोन थे शिवजी के 11वे रुद्र अवतार इस पौराणिक कहानी से

भगवान शिव के पूजन के लिए उचित समय प्रदोष काल में होता है। ऐसा माना जाता है कि शिव की अराधना दिन और रात्रि के मिलने के दौरान करना ही शुभ होता है। शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती ने भी शिवरात्रि का व्रत करके भगवान शिव का पूजन किया था।

भगवान शिव ने अपने भक्तों की पूजा और तपस्या से खुश होकर रक्षा करने के लिए कई अवतार लिए हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं। जिस प्रकार विष्णु के 24 अवतार हैं उसी प्रकार शिव के भी 28 अवतार हैं। इन्हीं में से शिव का 11वां रूद्र अवतार हनुमान का था।

शास्त्रों में रामभक्त हनुमान को शिव का अवतार माना गया है। रामचरित्र मानस में भी इसका जिक्र है। पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान विष्णू ने धर्म की स्थापना और अपने पार्षदों जय-विजय को जन्मों से मुक्त करने के लिए राम अवतार लिया था। तब शिव ने अपने आराध्य भगवान विष्णु की मदद के लिए हनुमान अवतार लिया था।

उसी दौरान सुमैरू पर्वत के स्वामी राजा केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ पूत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे। शिव उनके तप से प्रसन्न हुए और उन्हें मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा।

माता अंजना ने शिव से ऐसा पुत्र मांगा जो बल में रूद्र की तरह बलि हो, गति में वायु की तरह गतिमान हो और बुद्धि में गणेपति की तरह तेजस्वी हो। तब महादेव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था।

कहा यह भी जाता है कि धर्म की स्थापना और रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। उस समय कई देवताओं ने अलग-अलग रूप में भगवान राम की सेवा करने के लिए अवतार लिया था।

उसी समय भगवान शंकर ने भी अपना रूद्र अवतार लिया था और इसके पीछे वजह थी कि उनको भगवान विष्णु से दास्य का वरदान प्राप्त हुआ था। हनुमान उनके ग्यारहवें रुद्र अवतार हैं। इस रूप में भगवान शंकर ने राम की सेवा भी की और रावण वध में उनकी मदद भी की थी।

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