जानिए भगवान विष्णु शिव के गण वीरभद्र से कोन भागा था ?
बिलकुल ये ही हुआ था, भगवान् विष्णु शिव के गण वीरभद्र के सामने कुछ मिनट भी नहीं रुक सके और रणछोड़ हो गए लेकिन आखिर क्यों? वीरभद्र तो शिव के केश से उत्पन्न उनका एक गण मात्र था फिर उसमे ऐसा सामर्थ्य कैसे आया की उसने भगवान् विष्णु को रणछोड़ बना दिया.
जो कुछ भी हुआ, जो हो रहा है और जो आगे होगा वो हमारे कर्मो के अनुसार पहले ही लिख दिया जाता है भगवान् भी इस सच्चाई से परे नहीं है. पूरी बात समझने के लिए आपको दक्ष यज्ञ से शुरुवात करनी होगी, तब इंद्र दक्ष ही था जिसने भगवान् शिव के अपने को सम्मान न दिए जाने के चलते उनसे शत्रुता कर ली थी.
उसने यज्ञ करवाया जिसमे सभी देवताओ का भी भाग होता है लेकिन उसमे शिव को भाग देने से उसने मना कर दिया और तो और उन्हें बुलाया तक नहीं. पिता के यज्ञ की बात सुन सती वंहा पति से जबरदस्ती आज्ञा ले पहुँच गई जंहा उनका (शिव का) अपमान हुआ और उन्होंने देह त्याग कर दिया.
शिव के गण उनके साथी ही आये थे जिन्होंने उत्पात मचाया लेकिन दक्ष ने उन्हें खदेड़ दिया, तब शिव ने भेजा वीरभद्र को….
शिव के वीरभद्र और भैरव की अगुवाई में वंहा रक्तपात शुरू हो गया सभी देवता भाग खड़े हुए, देखते ही देखते दक्ष की सेना समाप्त हो गई. तब अपनी जान पर आते देख दक्ष ने अपने यजमान भगवान् विष्णु से मदद की गुहार लगाई, भक्त वत्तस्ल भगवान् मैदान में कूद पड़े लेकिन कुछ ही क्षणों में वो भी भाग छूटे.
दक्ष का यज्ञ विध्वंश हो गया, वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का धड़ सर से अलग कर दिया तब तो वंहा हाहाकार मच गया! बाद में ब्रह्मा जी के निवेदन पर शिव ने सब कुछ ठीक किया और दक्ष का यज्ञ पूरा कराया, लेकिन भगवान् विष्णु क्यों हार गए थे वीरभद्र से इसकी कहानी भी जाने.
असल में वो दधीचि ऋषि के श्राप के चलते हुआ था, जाने क्या है वो कहानी….
राक्षस वृतासुर के वध के लिए जरुरी वज्र के लिए अपनी अस्थिया दान देने वाले दाधीच ऋषि और राजा कुश घनिष्ठ मित्र थे लेकिन ब्राह्मण और क्षत्रिय में से कौन श्रेष्ठ इसके विषय में दोनों में विवाद हो गया और राजा ने दाधिश को अधमरा कर दिया. ढाढ़स ऋषि भगवान् शिव के उपासक थे और शिव ने उन्हें ठीक कर दिया और शक्तिया दी जिससे उन्होंने कुश को परास्त कर दिया.
राजा कुश ने तब अपने इष्ट विष्णु जी की तपस्या की और दाधीच ऋषि को हारने का वर माँगा, भगवान् विष्णु ने कहा की ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है लेकिन भक्त वत्सल होने के चलते मुझे तुम्हारे वरदान के लिए कोशिश करनी पड़ेगी हालाँकि मेरी बदनामी ही होगी. तब विष्णु जी ब्राह्मण के वेश में दाधीच ऋषि से क्षत्रिय श्रेष्ठ है ये कहलवाने गए…
लेकिन दाधीच ऋषि ने उन्हें पहचान लिया और श्राप दिया की तुम्हारा इस छल के चलते ही कभी मान भंग होगा, जो की बाद में दक्ष यज्ञ में हुआ. लेकिन भक्त वत्सल होने के चलते जब शिव और विष्णु युद्ध कर सकते है तो ये बदनामी तो आम बात ही है….
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