राधा जी ने महादेव के बारेमे ऐसा कोनसा प्रश्न पूछा जिसका जवाब देते समय श्री कृष्ण रो पड़े थे ?

शरीर से अलग जब जब आत्माओ के प्रेम की बात आती है तो हर प्रेमी की जुबान पर राधे कृष्ण का ही नाम आता है, दोनों ने आम इंसानो के जैसे धरती पर आकर शादी नहीं की पत्नी पति नहीं थे लेकिन फिर भी दोनों ने प्रेम की ऐसी पराकाष्ठा की के घर घर में आज भी दोनों जोड़े से पूजे जाते है.

लेकिन क्या उन दोनों के शिव इस त्रिलोकी में ऐसा कोई नहीं जो उनके प्रेम की तुलना कर सके? जिनको शास्त्रों का ज्ञान नहीं और जिन्होंने टीवी देख कर ही अपने भगवान् को जाना है वो शायद ये न सोच सके लेकिन अगर उनको गुरु मिला है तो गुरु ने अवश्य बताई होगी ये बात.

निर्गुण भगवान् की सत्ता का पालन ब्रह्मा विष्णु महेश करते है, विष्णु सौम्य रूप में रहते है तो शिव रौद्र रूप में उन्हें भस्म बहुत पसंद है और इसके लिए रुद्रावतार दुर्वासा बचपन में ही माँ के सोने के बाद घुस जाते थे चूल्हे में. उन्हें दर्द नहीं महसूस होता था और न ही ताप, लेकिन आखिर क्यों भस्म लगाते है शिव?

प्रेम शिरोमणि राधा रानी ने भी श्री कृष्ण से पूछ लय था की आखिर किसकी भष्म धारण करते है शिव किसकी पहनते है मुंड माला? जवाद देते हुए कृष्ण का रुध गया था गला…

पढ़े प्रेम की ऐसी पराकाष्ठा जो त्रिलोकी में राधे कृष्ण के प्रेम की तुलना कर सकती है, हालाँकि तुलना ठीक नहीं लेकिन शिव भक्तो के लिए ये जानना जरुरी है. राधा जी ने श्री कृष्ण से एक बार शिव जी का स्वरुप पूछा, आखिर किसकी भष्म लगाते है शिव क्यों है जटाशंकर क्यों है मुंडमाला धारी गले में सांप और बाघम्बर क्यों है?

आज पत्नी मर जाए तो पति बारहवे में ही रिसेप्शन एडजस्ट कर लेते है लेकिन जब महादेव की प्रिय पत्नी सती ने अपनी देह त्यागी थी तो महादेव ने क्या किया ये बताते हुए ही श्री कृष्ण का गला रुध गया था.

सती के देह त्याग पर पहले तो शिव ने गणो को आदेश दिया और दक्ष यज्ञ का विध्वंश किया, लेकिन भगवान् विष्णु के निवेदन पर उन्होंने उनका यज्ञ फिर पूर्ण करवाया. लेकिन उसके बाद अधजली सती की देह को अपने कंधो पर डाल कर एक वर्ष तक “उमा उमा” कराहते हुए त्रिलोकी में घूमते रहे.

जब जुदाई असह हो गई तो उन्होंने धरती पर प्रलय करने की सोची थी, तब भगवान् विष्णु ने सुदर्शन से सती की देह के 52 टुकड़े कर दिए थे. जंहा जंहा उनकी देह गिरी वोही शक्ति पीठ हो गए, लेकिन तब भगवान् शिव ने सती की देह की राख को अपने तन पर रमा लिया.

सती की अस्थियो की माला बना कर भगवान् शंकर ने अपने गले में डाल ली थी…

सती की सवारी सिंह ने भी प्राण त्याग दिए तो उसकी खाल को ही अपने शरीर पर लपेट लिया और बाघम्बर बन गए, उसके बाद शिव योगी हो गए और योगियों के लिए केश सज्जा नहीं बल्कि जटाशकर होना ही शोभा देता है. सर्पो को गरुड़ से भी था तो उन्हें भी अपने शरीर में शरण दी महादेव ने.

एक वर्ष तक त्रिलोकी में रोते हुए जंहा जंहा शिव जी के आंसू गिरे वंही रुद्राक्ष के पेड़ लग गए और उन्ही रुद्राक्ष को शिव ने अपनी पूरी देह में धारण कर लिया. पत्नी के बिछोह में ऐसा अनुपम त्याग किसी और ने नहीं किया होगा और न ही किसी के लिए ये सम्भव है.

सती की विरह में ऐसे रत हुए महादेव की पारवती जी से भी विवाह को तैयार नहीं हुए थे, आखिर में भगवान् विष्णु को उन्हें आदेश देना पड़ा था तब वो हुए थे अपनी ही पत्नी के पुनर्जन्म से विवाह को तैयार. ब्रह्मा वैवर्त पुराण में स्वयं श्री कृष्ण ने सुनाई थी राधा जी को ये बातें….

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