जाने राधाजी से जुड़ा हुआ हे वृन्दावन के इतिहास बारेमे

हालाँकि भगवान की 8 पटरानिया और 16100 रानिया थी लेकिन उनमे से किसी को भी उतनी कीर्ति नही मिली जितनी श्रीकृष्ण की पत्नी न होके भी राधा रानी को मिली थी. कभी सोचा है इसके पीछे क्या कारण रहा होगा, क्यों मिली राधा को इतनी कीर्ति जितनी किसी भी प्रेमिका को नही मिली.

राधा वृन्दावन से अलग न थी, और इसी से ही जुडी है कहानी राधा के पूर्व जन्म की. सतयुग में अभिमानी असुर जालंधर का वध तो किया था शिवजी ने लेकिन उसके लिए उसकी पत्नी का सतीत्व भंग करना जरुरी था. जालंधर की पति सती थी और उसका सतीत्व भंग करने वाला चाहे भगवान ही क्यों न हो जान का खतरा था.

जालंधर की पत्नी सती होने के आलावा भगवान विष्णु की परमभक्त भी थी सो उन्ही ने उसका सतीत्व भंग किया और जालंधर मारा गया. सतीत्व भंग करने के लिए विष्णु ने जालंधर का रूप बनाया और उसके महल में गए, जन्हा उसकी पत्नी ने उसे अपना पति समझ चरण स्पर्श किये.

एक सती के लिए अपने पति के आलावा चाहे वो भगवान की क्यों न हो पाप है, उसी समय जालंधर का कटा हुआ सर वंहा आके गिरा और सती ने विष्णु को पत्थर का होने का श्राप दिया. भगवान विष्णु पत्थर के हो गए तब माता लक्ष्मी ने सती से अपना पति पुनः माँगा और मिला भी.

उस सती का नाम था वृंदा जो की अपने पति की लाश के साथ सती हो गई थी, लेकिन उससे पहले भगवान ने उसे वर दिया की तुम मेरी पत्नी न होके भी मेरी पत्नी कहलाओगी. तब वृंदा की चिता के स्थान पर तुलसी का पौधा उगा जिससे पत्थर के भगवान विष्णु(शालिग्राम) से विवाह स्वयं लक्ष्मी ने करवाया.

अपने वरदान के स्वरुप वृंदा यानि तुलसी उसी स्थान पे जन्मी जन्हा वृन्दावन बसा था जो की उसी के नाम पे था, तब भगवान कृष्ण ने वंहा आके अपना वादा पूरा किया. ऐसे सती वृंदा को अपने खोये सतीत्व का पूरा फल मिला, भगवान कृष्ण 5 वर्ष के और राधा 12 वर्ष की थी तब हुई थी रासलीला इस कारण उनके प्रेम पर कोई उंगली भी न उठा पाया.

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